दुबारा आगमन / सरिता शर्मा / विलियम बटलर येट्स
बड़े होते आवर्त्त में गोल-गोल चक्कर काटता बाज़
अपने मालिक को सुन नहीं सकता;
सब चीज़ें बिखर रही हैं, केन्द्र के वश के बाहर;
केवल अराजकता छा गई है दुनिया में,
रक्तरंजित ज्वार भाटा छोड़ दिया गया है, और हर जगह
भोलेपन की रस्म खत्म हो गई है;
अच्छे लोगों में दृढ़ विश्वास की कमी है, जबकि बुरे लोग
जोशीले उन्माद में भरे हैं.
ज़रूर कोई पर्दाफ़ाश होने वाला है;
अवश्य दूसरा अवतार आने वाला है।
दूसरी बार अवतार! ये शब्द मुँह से निकलते ही
सामूहिक स्मृति से निकली विशाल छवि
मेरी नज़रों को परेशान कर देती है: रेगिस्तान की रेत में कहीं;
शेर के शरीर और इनसानी सिर की आकृति;
भावशून्य और सूरज जैसी निर्मम टकटकी
अपनी मंद जंघाओं से आगे बढ़ रहा है, जबकि इसके आस-पास
रेगिस्तानी के क्रोधित परिंदों की छायाएँ गोल-गोल घूम रही हैं.
अन्धेरा फिर से छा जाता है मगर अब मैं जानता हूँ
बीस शताब्दियों की पथरीली नींद
हिचकोले खाते पालने के दुस्वप्नों से सन्तप्त है,
और कैसा बर्बर नरपशु, अन्ततः जिसका समय आ गया है,
बेढब चाल से जन्म लेने हेतु बेथलेहम की ओर बढ़ रहा है?
मूल अँग्रेज़ी से सरिता शर्मा द्वारा अनूदित
लीजिए अब पढ़िए यही कविता मूल अँग्रेज़ी में
THE SECOND COMING
TURNING and turning in the widening gyre
The falcon cannot hear the falconer;
Things fall apart; the centre cannot hold;
Mere anarchy is loosed upon the world,
The blood-dimmed tide is loosed, and everywhere
The ceremony of innocence is drowned;
The best lack all conviction, while the worst
Are full of passionate intensity.
Surely some revelation is at hand;
Surely the Second Coming is at hand.
The Second Coming! Hardly are those words out
When a vast image out of Spiritus Mundi
Troubles my sight: somewhere in sands of the desert
A shape with lion body and the head of a man,
A gaze blank and pitiless as the sun,
Is moving its slow thighs, while all about it
Reel shadows of the indignant desert birds.
The darkness drops again; but now I know
That twenty centuries of stony sleep
Were vexed to nightmare by a rocking cradle,
And what rough beast, its hour come round at last,
Slouches towards Bethlehem to be born?