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दुमछल्ला / उषा यादव

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दादाजी की गोदी चढ़कर,
खूब मचा हूँ मैं हल्ला।
लाड़ लड़ाते जाते हैं वे,
मुँह से कहते-‘बड़ा चिबिल्ला’।

दादा की रज़ाई में घुसकर,
रात बनाता हूँ घरबूला।
झूठ-मूठ का होता उसमें,
सोफ़ा अलमारी और झूला।

मम्मी की साड़ी उँगली पर,
रोज लपेटूँ, ज्यों हो छल्ला।
मम्मी कहती है तब हँसकर,
तू ही है मेरा दुमछल्ला।