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दुर्ग फाटक / नवीन ठाकुर ‘संधि’
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दुर्ग खोलोॅ दुर्गा मैया,
करतै दर्शन माय, बाबू, भैया।
कोय चढ़ैतोॅ पाठा बकरू करी दर्शन,
कोय करतौं पूजा-पाठ मन्नें-मन।
सब्भै केॅ दीहोॅ फोॅल एक्के रंग,
तोहरे छेकौं बेटा बेटी भलोॅ बेढंग।
उच्च-नीच नै, सब पेॅ करियोॅ दया,
तोहेॅ विदा होभो मनदिलोॅ सें,
मतुर की सब्भै रोॅ दिलोॅ सें?
तोहरेॅ देलोॅ धोंन की करबोॅ पूजा धनोॅ सें,
पूजा करभौ फूल बेलपात लानी बनोॅ सें।
कष्टोॅ सें "संधि" निवारण करोॅ काया।