भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुलत्ती के बीच / राम सेंगर
Kavita Kosh से
देवता ही
कर रहे हैं कूच
कुछ ऐसा समय है
कुछ कहा जाता नहीं
क्या हो गया है !
क्या कहें ,
इस खौलते जलकुण्ड में डाले गए थे
या हमीं को
यह नियति मँज़ूर थी ।
कुण्ड से
बाहर निकलने की तड़प में पार पकड़ी
जान आई
दूर जो हमसे बहुत ही दूर थी ।
क्या कहें ,
जीवन-मरण की दुलत्ती के बीच
कँचा खोजने की ,
नेत्र अन्तर्शक्तियोँ के बन्द-से हैं,
प्रभु कृपा है ।
कुछ कहा जाता नहीं
क्या हो गया है ।