भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दू हजार चारिक बाढ़ि / शम्भुनाथ मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अबितहि बाढ़ि कँपाबय सबकेँ
बाढ़ि-वेदना अपरम्पार
केहन-केहन लुरिगर ओ मुँहगर
पीटि रहल छथि अपन कपार

सन उनैस सय सत्तासीकेर
बाढ़ि अपन छल कयने नाम
दू हजार सन चारि केर तँ
पछिलोसँ बेसी बदनाम

की दरिभंगा की मधुबन्नी
शिवहर तथा समस्तीपुर
केहन-केहन घरकेँ भसिऔलक
उजड़ल बहुतो सिरक सिनूर

बागमती कोशी अधवारा
गंडक कमला संग बलान
अस्त-व्यस्त कयलक जनजीवन
जीवित रहितो मृतक समान

बच्चा बूढ़ सहित पशुहुक शव
बहइत देखि नदीकेर तीर
भेल दुनू दृग साओन-भादव
ककरो चित्त रहल नहि थीर

जतहि पानिकेर छलै अधिकता
ततहि पानिलय करय किलोल
डूबि रहल छल केहन-केहन घर
नहि बाँचल छल कोनहुँ टोल

बाढ़ि आबि चलि गेल किन्तु
भोजन वस्त्रक बड़ संकट भेल
जीवन सभक भेल दुखदायी
बहुतो लोक बेलल्ला भेल

दुख सागरमे डूबल बहुतो
बहुतो पर टुटि पड़ल पहाड़
जकरो दुनियाँ छलै प्रकाशित
तकरो जीवन भेल अन्हार

जकरा सबपर छल भरोस
से बैसल राखि हाथ पर हाथ
बाढ़ि नामपर लूट मचल अछि
जनता अपन हँसोथय माथ

पाँच दशकसँ ऊपर बीतल
कहबा लय भेलहुँ स्वाधीन
कुर्सी पबिते ज्ञानवान सब
बनि जाइत छथि ज्ञान-विहीन

सब उजड़लकेँ पुनः बसायब
बनि रहलै सरकारी प्लान
राहत बाँटि रहल अछि सबतरि
ऊँटक मुँहमे जीर समान

सरकारी वितरणक नामपर
चोर उचक्काकेर बैसार
पछिलग्गू छुटभैया सबहिक
भेल छैक सबतरि पैसार

कोना हड़पि कऽ भरब बखारी
कोना धरायब कोन जोगाड़
बाढ़ि नामपर बट्टी असुलय
लुच्चा लम्पट चोर चुहाड़

बाढ़ि थिकै प्राकृतिक आपदा
पर्व जकाँ अबइछ प्रति साल
खानापुरी मात्र जनता लय
बँटनिहार हो मालामाल

बाढ़ि नामपर मारामारी
ठेलम-ठेला रेलमपेल
मुदा गमैया टुटपुजिया लय
लगय मोछमे मटियातेल

चक्कर लगबय उड़न खटोला
दौड़य बच्चा बूढ़ जुआन
जठरानल धधकल सोझाँमे
अपनो परिजन लागय आन

बेर न अछि उलहन उपरागक
सब मिलि जुलि कऽ करी विचार
बाढ़ि न साले-साल सताबय
करी ठोस कोनो उपचार

छोटपैघ सब नदी जोड़ि कऽ
जलक होय आदान-प्रदान
बाढ़िक भूत पड़ायत तखने
जखन हैत किछु ठोस निदान

की की नहि भसिआयल केवल
नहि भसिआयल छुद्र विचार
सौंसे जग जगमग करैत जँ
भसिया जइतय भ्रष्टाचार