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दूर गगन में तारा टूटा / गुलाब खंडेलवाल
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दूर गगन में तारा टूटा
अंधकार ने मुँह फैलाया
सूनापन डँसने को आया
नहीं समझ पाया था कुछ भी वह कि काल ने आकर लूटा
व्योम-पटी पर वह अभिमानी
लिख करुणा की अमर कहानी
एक और चल दिया क्षितिज में जैसे भाग्य किसी का रूठा
फूलों ने आँसू बरसाए
विरह-गीत कोयल ने गाये
दुखिया रजनी के अंतर से नीरव दुखोच्छ्वास-सा छूटा
दूर गगन में तारा टूटा