भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूर है किनारा गहरी नदी की धारा / रविन्द्र जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूर है किनारा
गहरी नदी की धारा
टूटी तेरी नइया
माझी
खेते जाओ रे
हे हे नइया
खेते जाओ रे
दूर है किनारा
हो

आँधी कभी तूफ़ाँ कभी
कभी मझधार
ओ माझी रे
हे हे माझी रे
आँधी कभी तूफ़ाँ कभी
कभी मझधार
जीत है उसी की जिसने
मानी नहीं हार

माझी
खेते जाओ रे
दूर है किनारा
हो

डूबते हुये को बहुत है
तिनके का सहारा
ओ माझी रे
हे हे माझी रे
डूबते हुये को बहुत है
तिनके का सहारा
मन जहाँ मान ले माझी
ए हे मन जहाँ मान ले माझी
वहीं है किनारा

माझी
खेते जाओ रे
दूर है किनारा
हो
हे हे नइया
खेते जाओ रे