भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूरियां / अर्चना कुमारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम से मैं तक के फासले में
एक कदम पूरब को
एक कदम पश्चिम का साथ चाहिए
कम करते हुए रास्तों की लम्बाई
दरम्यां ख़ामोशियों के
लफ्ज़ झनझना कर गिरता
मन चौंकता है
आंखें खुलती हैं
देखती हैं बाहर मन के
जस की तस दूरियों का आकलन
न भाव करता है
न शब्द...
जैसे नहीं मिलते किनारे
नदी के सूखने पर भी
कुछ फासले कभी तय नहीं होते।