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दूषित होतीं ताज़ा साँसे / प्रेमनन्दन
Kavita Kosh से
अभी -अभी किशोर हुईं
मेरे गाँव की ताज़ा साँसें
हो रही हैं दूषित
सूरत, मुम्बई, लुधियाना...में !
लौट रही हैं वे
लथपथ,
दूषित-दुर्गन्धित !
उनके सम्पर्क से
दूषित हो रही हैं
साफ़, ताज़ा हवाएँ
मेरे गाँव की !