दूसरोॅ सर्ग / अंगेश कर्ण / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
बीज फूट के फूटी पड़लै
गजुरी उठलै पौधा बनलै,
कौरव आरो पाण्डव बीचै
दीवारो कुछ उच्चोॅ उठलै।
पाण्डव-मन में बदला लै के
रोजे-रोज उठै कुछ हेनोॅ,
बीच समुन्दर में गरजी केॅ
ऊँच्चोॅ ज्वार उठै छै जेनोॅ।
”अर्जुन सब्भै जानै छेलै
तीर कला में अद्भुत अर्जुन,
तहियो की टिकतै कर्णोॅ लुग
अर्जुन इक गुण, तेॅ ऊ दू गुण।“
”छुच्छे हँसवोॅ कर्णोॅ पर तेॅ
शोभा नै दै पाण्डव सब केॅ,
ई तेॅ होने ही लागै छै
आंधी पर जों दीया भभकेॅ।“
”मन के आग मिटै नै केन्हौं
जे रं मात कर्ण सें खैलौं,
जे अपयश अब तक नै होलोॅ
ऊ अपयश कर्णोॅ सें पैलौं।“
यहेॅ बात सब सोचै पाण्डव
दावोॅ के खोजोॅ में लगलोॅ,
एक्के चिन्ता में सब बेकल
सद्दोखिन सुतलोॅ आ जगलोॅ।
खेल-खेल मंे मौका मिलतैं
पाण्डव दुर्योधन केॅ कुछ लै,
तिक्खोॅ रं बाते बोललकोॅ
जना-तना बस मन केॅ कुचलै।
जे आरो बोलै से बोलै
भीमो तक नै पीछू छेलै,
जे कर्णोॅ सें पटकी खाय केॅ
कै दिन तां सम्मुख नै ऐलै।
इक दिन कुछ बातोॅ केॅ लै केॅ
भीम कहलकै अनटेटलोॅ रं,
दुर्योधन केॅ कर्णोॅ कॅे लै
एकदम तिक्खोॅ सन ऐंठलोॅ रं।
गुस्सा तरबा तर के ऐलै
दुर्योधन के माथा ऊपर,
दोनों ठोर करै फड़फड़ तेॅ
हाथ-गोड़ गुस्सा में थर-थर।
वही हाल में बोली पड़लै
कर्णोॅ सें आदेशे हेनोॅ,
”अभी भीम केॅ पकड़ी लानोॅ
हाथ, कमर आ छाती, ठेनोॅ।“
”फेकी दौ एकरा गंगा में
तबेॅ बुझैतै ई भीमोॅ केॅ,
पनतोवा के बदला वैनें
जाय चबैलोॅ छै नीमोॅ केॅ।“
एतना भर ही कहना छेलै
कर्ण भीम सें भिड़िये गेलै,
एक दाँव के बादे ही तेॅ
ऊ छाती पर चढ़िये गेलै।
जंजीरॉे सें बाँधी होकरा
दुर्योधन केॅ सौंपी देलकै,
दुर्योधन विषपान कराय केॅ
गंगाहै मंे फेंकी देलकै।
भागोॅ सें गंगा मंे एक ठो
विषधर भांसी रहलोॅ छेलै,
भीमोॅ केॅ वें डंसी लेलकै
जै सें विष सब उतरी गेलै।
जान बचैलै भीम कनौ केॅ
ऐलै घोॅर हफसलोॅ-डरलोॅ,
भाय सिनी सें बोलेॅ लागलै
”व्यर्थ जाय सब करलोॅ-धरलोॅ।“
”ताकत में कर्णोॅ सें कोय्यो
सकी-ठठी लेॅ मुश्किल छै ई,
जे दुर्योधन के बातोॅ में
हर कामोॅ में शामिल छै ई।“
”एकरा एक धनुष-विद्यै सें
सीख सिखैलोॅ जावेॅ पारेॅ,
कर्ण बड़ा बलशाली छै तेॅ
माँत यहीं पर खाबेॅ पारेॅ।“
सोच-विचारोॅ सें तय होलै
कर्ण हटाना छै रस्ता सें,
बिना उठैले कोनो जोखिम
एकदम सस्ता आ सस्ता सें।
”बहुत भरोसोॅ दुर्योधन केॅ
ई कर्णोॅ सें बढ़लोॅ होलोॅ,
बिना झड़ैलेॅ नै टुटतौं ई
ई हेनोॅ फर-कत्तो झोलोॅ।“
“सबक सिखाना छै कर्णोॅ केॅ
आरो हम्मी ही सिखलैबै,
कर्ण विपद् जों पाण्डव लेॅ छै
द्वन्द्वकला से दूर हटैबै।“
”हेनोॅ हटतै कि घूरी केॅ
लौटी ऊ फेनू नै ऐतै,
बुझबै मरद, मरद के जनलोॅ
जों हमरा सें हाथ लगैतै।“
अर्जुन के ई बात सुनी केॅ
चारो भाय दिखै छै गदगद,
रोआं भुटकै सुख सें जत्तेॅ
सुख सें मन ठो ओत्तै सरगद।