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दृश्य / अरविन्द यादव
Kavita Kosh से
बड़ी मुश्किल से मिलते हैं आजकल
देखने को ऐसे दृश्य
जहाँ कोई नदी पिला रही हो पानी
प्यासे को, जो तोड़ रहा हो दम किनारे पर
कोई खेत जो ले जा रहा हो अनाज
उस घर तक जहाँ ठण्डे पड़े हों चूल्हे
या कहीं ऐसे हाथ जो बचा रहे हों
सड़क पर दम तोड़ती सांसों व
ठिठुरते फुटपाथ को
राह चलते जब दिखाई देते हैं ऐसे दृश्य
तो जन्म लेती है एक उम्मीद
कि बचा रहेगा जीवन
बची रहेगी धरती।