भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दृश्य करते हुए / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
कुछ कहते नहीं पत्ते
सूनेपन को शब्द करते हैं
ख़ुद से भर कर—
हवा में बसा है जो
एक दिन
झर जाते हैं चुपचाप
हवा के सूनेपन को
दृश्य करते हुए ।
—
25 अगस्त 2009