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देख़ते नहीं / केशव
Kavita Kosh से
छोटी-छोटी खुशियों की ओर
हम मुड़कर देखते नहीं
बड़ी खुशियाँ दिखती नहीं हमें
उम्र गुजर जाती है यों ही
द्वार-द्वार खटखटाते हुए।