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देर तक बारिश होती / शहरयार
Kavita Kosh से
शाम को इंजीर के पत्तों के पीछे
एक सरगोशी बरहना पाँव
इतनी तेज़ दौड़ी
मेरा दम घुटने लगा
रेत जैसे ज़ायक़े वाली किसी मशरूब की ख़्वाहिश हुई
वह वहाँ कुछ दूर एक आंधी चली
फिर देर तक बारिश हुई।
शब्दार्थ :
मशरूब=पेय