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देवेन्द्र आर्य के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'

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यह गीत देवेन्द्र आर्य के लिए

एक बार फिर से आ जाओ!
ख़ामोशी के सुन्न महल में हँसकर कोई जोत जलाओ!!
एक बार फिर से आ जाओ!

जहाँ प्रीति की धूप खिली थी आज वहाँ गहरी छाया है।
ओ सुख-सागर तूने मुझको बून्द-बून्द को तरसाया है।
कब से परती है ये धरती प्रेम-सुधा इस पर बरसाओ!!
एक बार फिर से आ जाओ!

जहाँ मचलती थी हरियाली वहाँ बरजती धूल जमी है।
ओ मायावी तुम क्या रूठे हर रजकण में एक कमी है।
बड़ी अभागिन है ये जगती हंसकर इसको गले लगाओ!!
एक बार फिर से आ जाओ!

नई कोंपलें फूट चलेंगी अग-जग में उजियारा होगा।
एक बार फिर से यह सूरज नवयुग का हरकारा होगा।
आओ आकर कण्ठ लगाओ बीत गया जो भूल भी जाओ!!
एक बार फिर से आ जाओ!

23-6-1992 -- 24-1-2017