भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देश / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
ग्राम, नगर या कुछ लोगों का नाम नहीं होता है देश,
संसद, सड़कों आयोगों का नाम नहीं होता है देश।
देश नहीं होता है केवल सीमाओं से घिरा मकान,
देश नहीं होता है कोई सजी हुई ऊँची दूकान।
देश नहीं क्लब जिसमें बैठे करते रहे सदा हम मौज,
देश नहीं होता बन्दूक़ें, देश नहीं होता है फ़ौज।
जहँ प्रेम के दीपक जलते, वहीं हुआ करता है देश,
जहाँ इरादे नहीं बदलते, वहीं हुआ करता है देश।
हर दिल में अरमान मचलते, वहीं हुआ करता है देश,
सज्जन सीना ताने चलते, वहीं हुआ करता है देश।
देश वही होता जो सचमुच आगे बढ़ता क़दम-क़दम,
धर्म, जाति, भाषाएँ जिसका ऊँचा रखती हैं परचम।
पहले हम ख़ुद को पहचानें, फिर पहचानें अपना देश,
एक दमकता सत्य बनेगा, नहीं रहेगा सपना देश!