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देश का प्रेम / हेमन्त कुकरेती

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देश को भी दलाल चाहिए
चलाने के लिए
कुत्ते को घुमाते हुए बताते हैं
समकालीन

इसी रास्ते भारतभाग्य विधाता लौटता है
प्रेम में पुलकित होकर

हमारे सारे विरोध एक होकर भी
सही बदलाव नहीं ला सके तो
मैं कहूँगा
तुमने ठीक आदमी नहीं चुने
मेरे साथ मेरे मुँह पर नहीं कहते
कि मैं मक्कार हूँ
या बार-बार ठगा गया एक इन्सान

नुक्स जो मुझमें दिखते हैं
नहीं बताते कि
कमियाँ दरअसल मुझमें
आयीं कहाँ से

खम्भे की तरफ़ टाँग उठाये
पाँच दशक पुराना बूढ़ा
बताता है
वहाँ से!

उस दिशा में कोहराम है
घुटकर रह गया है प्रेम
जनगण का

यह कैसा ग्लोब बनाया हमने
कि कहीं नहीं बची
घर जाने की राह