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देश के हर धर्म, भाषा, जाति, जन से प्यार है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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देश के हर धर्म, भाषा, जाति, जन से प्यार है।
जिस के दिल में भाव ये आया न, वो गद्दार है।
  
है अगर हीरा तुम्हारे पास तो कोशिश करो,
काँच केवल पत्थरों से छाँटना बेकार है।

सीख लो सब तैरना दरिया ने लोगों से कहा,
ना-ख़ुदा अब छोड़ता सब को यहाँ मँझधार है।

हो गए इतने विषैले हों अमर इस चाह में,
कोबरा को मार सकती अब हमारी लार है।

देश की मिट्टी थी खाई मैंने बचपन में कभी,
आज वो बनकर लहू मुझको रही ललकार है।