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देश भाषा / पद्मजा बाजपेयी
Kavita Kosh से
भाषा से भाव अभिव्यक्त होते,
सुनकर उदगार हम सिक्त होते,
अगर न कोई भाषा होती,
पत्थर से सब प्राणी होते।
अमर हुए वे लोग, जिन्होने वाणी दे दी,
अपनी संचित ज्ञान निधि, हमें पुरस्कृत कर दी
नमन करूँ शत बार, उन्हीं के श्री चरणों पर,
ज्ञान वर्घिनी वाणी की सेवा में तत्पर
हर विवाद को त्याग, जुड़े हिन्दी से हम सब,
मिश्रित है हिन्दी में, उनकी छोटी बहनें,
विलग नहीं है वे, क्यों करते तुम लम्बी बहसें।
करो प्रेम तुम निज भाषा से, याद रहे सम्मान एक,
विश्व के सम्मुख देश एक, ध्वज एक, मुद्रा एक
तो क्यो न हो देशभाषा भी एक,