भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देश हमरऽ हो भाय / श्रीस्नेही
Kavita Kosh से
कत्तेॅ सुन्दर लागै देश हमरऽ हो भाय!
खेत-रेत बाँस-वन-टेसू फुलाय!!
कत्तेॅ सुन्दर...
बँटलऽ इलाका में अलग-अलग भेष हो!
सभ्भे मिली एक्के हम्में एक्के हमरऽ देश हो!!
कत्तेॅ सुन्दर...
गाँव के बुतरूआ लेॅ परी के आँगन!
बुढ़बा-जबानऽ के नंदन-कानन!!
कत्तेॅ सुन्दर...
चमकै सुरूज-तारा आरो चनरमा!
धरती के धरे-धर जड़लऽ जुगुनमा!!
कत्तेॅ सुन्दर...
हारा-पीरऽ नीलऽ रंग सभ्भे मिली एक्के रंग!
जन्नें देखऽ हुन्हैं शोभै खेत धानी-माटी रंग!!
कत्तेॅ सुन्दर...