भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देशगीत : अनुरागमयी वरदानमयी / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अनुरागमयी वरदानमयी

भारत जननी भारत माता!

मस्तक पर शोभित शतदल सा

यह हिमगिरि है, शोभा पाता,

नीलम-मोती की माला सा

गंगा-यमुना जल लहराता,

वात्सल्यमयी तू स्नेहमयी

भारत जननी भारत माता।



धानी दुकूल यह फूलों की-

बूटी से सज्जित फहराता,

पोंछने स्वेद की बूँदे ही

यह मलय पवन फिर-फिर आता।

सौंदर्यमयी श्रृंगारमयी

भारत जननी भारत माता।


सूरज की झारी औ किरणों

की गूँथी लेकर मालायें,

तेरे पग पूजन को आतीं

सागर लहरों की बालाएँ।

तू तपोमयी तू सिद्धमयी

भारत जननी भारत माता!