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दैरों में गुनाहों की तरह / संजय चतुर्वेद
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कुछ तो एक जाल-सा हर सिम्त बिछा रक्खा है
बाकी अत्तार के चेलों को लगा रक्खा है
कुछ समझ में नहीं आता कि ये चक्कर क्या है
क्या तमाशा ये अदीबों ने बना रक्खा है
यूँ सुख़न पेश है दैरों में गुनाहों की तरह
फिर ज़ियारत को अगर जाओ तो क्या रक्खा है