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दो रूप / मोहन अम्बर

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आदमी अमरित-सा तो है, आदमी जहरीला भी है
पथ पर चलते पथिक अनेक
किन्तु जय पाता केवल एक
पराजय फिर भी कुढ़ती है
विजय पर गलती मढ़ती है
इस तरह सत्य झगड़ता है, मुझे तब कहना पड़ता है
आदमी पथ-दृष्टा तो है, आदमी भटकाता भी है।
आदमी अमरित-सा तो है,॥
सिन्धु से लेकर बूँद हजार
भूमि से बादल करता प्यार
आँधियाँ लेकिन चलती हैं
मेघ को रोज़ निगलती है।
इस तरह प्यार ज़ुल्म घुमड़ता है, मुझे तब कहना पड़ता है
आदमी बादल-सा तो है, आदमी आँधी-सा भी है।
आदमी अमरित-सा तो है,॥
रूप पर होते नयन निहाल
प्राण में जलती प्रणय मशाल
रूप तो लेकिन गर्वित है
कहानी यों अभिशापित है।
इस तरह प्यार उजड़ता है, मुझे तब कहना पड़ता है
आदमी प्रियतम-सा तो है, आदमी दुश्मन-सा भी है।
आदमी अमरित-सा तो है,॥