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दोस्त / रविकान्त
Kavita Kosh से
मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता था,
तुम मुझे परख रहे थे
मैंने खुद को छोड़ दिया था,
परखा जाने के लिए
काफी समय लगा
तुम मुझमें भी कुछ देख पाए
मेहनत की मैने भी काफी
अपने भीतर
कुछ तो भी पैदा करने के लिए
मैं ऐसी हजार बातों पर चुप रहा
जिनसे बिगड़ सकता था अपना मेल
तुम्हारी हजार बातों का मुरीद हुआ मैं
हम दोनों की दोस्ती यों ही नहीं हो गई
हमें आगे बढ़ना पड़ा
वहाँ से
जहाँ हम खड़े थे