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दोस्त के लिए / चंद्रभूषण
Kavita Kosh से
अगर हम होते हवाई द्वीप के वासी
तो एक-दूसरे से अपने नाम बदल लेते
सीथियन होते तो
भरे जाम में खड़ा करते एक तीर
कलाइयों में एक साथ घोंपकर
आधा-आधा पी लेते
झूठ और कपट से भरे इस दौर में
दोस्ती भी अगर
दंत-मंजन के विज्ञापनों जैसी ही करनी है
तो बेहतर होगा,
यह बात यहीं ख़त्म हो जाय
नाम का नहीं, ख़ून का नहीं
पर एक तीख़े तीर का साझा
हम अब भी कर सकते हैं
सोच में चुभा हुआ सच का तीर
जो सोते-जागते कभी चैन न लेने दे
मैं कहीं भी रहूं
तुम्हारे होने का खौफ़
मुझे नीचे जाने से रोक दे
तुम उड़ो तो इस यकीन के साथ
कि ज़मीन पर छाया की तरह
मैं भी तुम्हारे साथ चल रहा हूं