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दोस्त जब ज़ी-वक़ार होता है / इन्दिरा वर्मा

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दोस्त जब ज़ी-वक़ार होता है
 दोस्ती का मेयार होता है

 अब तसव्वुर की सूनी वादी में
 रोज़ जश्न-ए-बहार होता है

 गुलशन-ए-जाँ में उन के आने से
 गुल-सिफ़त कारोबार होता है

 जब बिछड़ जाता है कोई अपना
 ग़म ही बस रोज़-गार होता है

 चाँद का रक़्स हो रहा है कहीं
 दिल यहाँ से निसार होता है

 शाख़-दर-शाख़ होती है ज़ख़्मी
 जब परिंदा शिकार होता है