भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोस्ती में दुश्मनी शामिल हमारी / सुधेश
Kavita Kosh से
दोस्ती में दुश्मनी शामिल हमारी
हाय निकली ज़िन्दगी क़ातिल हमारी।
हुस्न की शमाअ जली है चाँदनी में
जलवा तेरा है मगर महफ़िल हमारी।
शमा परवाने वही हैं रोशनी भी
लूट लो आकर तुम्हीं महफ़िल हमारी।
आज दिल की बस्ती में पहरे लगे हैं
दर्द कैसे हो बयां मुश्किल हमारी।
ज़िन्दगी की शाम गहराने लगी है
एक मृगतृष्णा बनी मंज़िल हमारी।
कौन क़़ातिल है यहाँ कैसे कहूँ अब
जिस्म सालिम रूह है बिस्मिल हमारी।