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दोहा सप्तक-49 / रंजना वर्मा

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राम राम कहते चलो, जब तक मुख में बोल।
प्रभु का आवाहन करो, हृदय किवड़िया खोल।।

खिली खिली है चाँदनी, दूध नहाई रात।
हर पूनम शशि रात को, देता यह सौगात।।

माया मोह नचा रहे, बढ़ता लोभ अपार।
मनमोहन का नाम ले, तज दीजे संसार।।

मल मल कर तन धोइये, करिये नित्य सिंगार।
मन पर कब लोभित हुआ, यह निर्मम संसार।।

रखता नित्य अशांत है, करे न निश्छल प्यार।
मन की आंखों देखिये, अद्भुत है संसार।।

तन मन को लगने लगे, जब यह जीवन भार।
सुमिरन करिये कृष्ण का, जब छूटे संसार।।

मन के नयन उघारिये, कृष्ण सदा साकार।
मनमोहन से प्यार तो, व्यर्थ सकल संसार।।