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दोहा सप्तक-89 / रंजना वर्मा
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ध्यान रखें यह नित्य ही, कभी न हो अपकार।
दोनों हाथों बाँटिये, जन जन ममता प्यार।।
है ईनाम मिला हमे, मिला स्वजन का साथ।
निभे मित्रता ये सदा, रहे हाथ मे हाथ।।
प्रीत कृष्ण सम कीजिये, दिया हृदय में वास।
कभी न टूटे प्रीत नित, बना रहे विश्वास।।
नारी होती है सदा, मातृ तत्व का रूप।
सुत का हित ही देखती, छाया हो या धूप।।
जिसने त्यागी कामना, वह ही सरल सुजान।
यतन करे तो एक दिन, मिल जायें भगवान।।
जाति धर्म भूली सभी, बना कृष्ण को यार।
सहज कहीं मिलता नहीं, सहजो जैसा प्यार।।
धुन मृदंग मीठी बड़ी, जब जब पड़ती थाप।
तन मन रँगता प्रीति रँग, मिटे सकल सन्ताप।।