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दोहा सप्तक-93 / रंजना वर्मा

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जाहु न हे सखि मिलन को, तुम साजन के पास।
चक्रवाक लखि चौंकिहैँ, तव मुख चन्द्र उजास।।

श्याम कहाँ तुम जा बसे, तोड़ दीन की आस।
दर्शन दे शीतल करो, इन नैनन की प्यास।।

श्याम छोड़ इस दीन को, कहाँ जा बसे नाथ।
मुझे बचा भव जलधि से, आज बढाओ हाथ।।

खड़ी राधिका है रही, मोहन तुम्हें पुकार।
नैन तृषित दोनो थके, तेरी बाट निहार।।

भूल गये हमको हरी, लख कुब्जा का गात।
भुला दिया है किंतु क्या, मिली हृदय सौगात।।

हृदय धाम वृंदा विपिन, दृग कालिंदी तीर।
यहीं बसेरा कीजिये, बलदाऊ के वीर।।

यादें हैं कचनार सी, खिल खिल उठे समीर।
बजी प्रेम की बाँसुरी, मन यमुना के तीर।।