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दोहावली / तुलसीदास/ पृष्ठ 112

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दोहा संख्या 111 से 120

तुलसी रामहु तें अधिक राम भगत जियँ जान।
 रिनिया राजा राम भे धनिक भए हनुमान।111।

कियो सुसेवक धरम कपि कृतग्य जियँ जानि ।
जोरि हाथ ठाढ़े भए बरदायक बरदानि।112।

भगत हेतु भगवान प्रभु रा धरेउ तनु भूप।
किये चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप।113।

 ग्यान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार।
सोइ सच्चिदानंदघन कर नर चरित उदार।114।

हिरन्याच्छ भ्राता सहित मधु कैटभ बलवान।
जेहिं मारे सोइ अवतरेउ कृपासिंधु भगवान।115।

सुद्ध सच्चिदानंदमय कंद भानुकुल केतु।
चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु।116।

बाल बिभूषन बसन बर धूरि धूसरित अंग।
बालकेति रघुबर करत बाल बंधु सब संग।117।

अनुदित अवध बधावने नित नव मंगल मोद।
मुदित मातु पितु लोग लखि रघुबर बाल बिनोद।118।

राज अजिर राजत रूचिर कोसलपालक बाल।
जानु पानि चर चरित बर सगुन सुमंगल माल।119।

नाम ललित लीला ललित ललित रूप रघुनाथ।
ललित बसन भूषन ललित ललित अनुज सिसु साथ।120।