दोहावली / तुलसीदास/ पृष्ठ 37
दोहा संख्या 360 से 370
तुलसी किएँ कुसंग थिति होहिं दाहिने बाम। 
कहि सुनि सकुचिअ सूम खल गत हरि संकर नाम।361। 
बसि कुसंग वह सुजनता ताकी आस निरास। 
तीरथहू केा नाम भे गया मगह के पास।362।
 राम कृपाँ तुलसी सुलभ गंग सुसंग समान। 
जो जल परै जो जन मिलै कीजै आपु समान।363। 
ग्रह भेषज जल पनन पट पाइ कुजोग सुजोग। 
होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग लखहिं सुलच्छन लोग।364। 
जनम जोग में जानियत जग बिचित्र गति देखि।
 तुलसी आखर अंक रस रंग बिभेद बिसेषि।365। 
आखर जोरि बिचार करू सुमति अंक लिखि लिखि लेखु।
जोग कुजोग सुजोग मय जग गति समुझि बिसेषु।366। 
करू बिचार चलु सुपथ भल आदि मध्य परिनाम। 
उलटि जपें ‘जारा मरा’ सूधें ‘राजा राम’।367। 
होइ भले कें अनभलो होइ दानि कें सूम। 
होइ कपूत सपूत कें ज्यों  पावक में धूम।368। 
जड़ चेतन गुन दोष मय बिस्व कीन्ह करतार। 
संत हंस गुन गहहि पय परिहरि बारि बिकार।369। 
पाट कीट तें होइ तेहि तें पटंबर रूचिर। 
कृमि पालइ सबु कोइ परम अपावन प्रान सम।370। 
	
	