दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 46
दोहा संख्या 451 से 460
कै जूझिबो कै बूझिबो दान कि काय कलेस।
चारि चारू परलोक पथ जथा जोग उपदेस।451।
पात पात को सींचिबो न करू सरग तरू हेत।
कुटिल कटुक फर फरैगो तुलसी करत अचेत।452।
गठिबँध ते परतीति बड़ि जेहिं सबको सब काज।
कहब थोर समुझब बहुत गाड़े बढ़त अनाज।453।
अपनो एपन निज हथा तिय पूजहिं निजज भीति।
फरइ सकल मन कामना तुलसी प्रीति प्रतीति।454।
बरषत करषत आपु जल हरषत अरघनि भानु।
तुलसी चाहत साधु सुर सब सनेह सनमानु।455।
श्रुति गुन कर गुन पु जुग मृग हय रेवती सखाउ।
देहि लेहि धन धरनि धरू गएहुँ न जाइहि काउ।456।
ऊगुन पूगुन बि अज कृ म आ भ अ मू गुनु साथ।
हरो धरो गाड़ो दियो धन फिरि चढ़इ न हाथ।457।
रबि हर दिसि गुन रस नयन मुनि प्रथमादिक बार।
तिथि सब काज नसावनी होइ कुजोग बिचार।458।
ससि सर नव दुइ छ दस गुन मुनि फल बसु हर भानु।
मेषादिक क्रम तें गनहि घात चंद्र जियँ जानु।459।
नकुल सुदरसन दरसनी छेमकरी चक चाष।
दस दिसि देखत सगुन सुभ पुजहिं मन अभिलाष।460।