भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 9

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दोहा संख्या 81 से 90


सनमुख आवत पथिक ज्यों दिएँ दाहिनो बाम।
तैसोइ होत सु आप को त्यों ही तुलसी राम।81।

राम प्रेम पथ पेखिऐ दिएँ बिषय तन पीठि।
तुलसी केंचुरि परिहरें होत साँपेहू दीठि।82।

तुलसी जौ लौं बिषय की मुधा माधुरी मीठि।
तौ लौं सुधा सहस्त्र सम राम भगति सुठि सीठि।83।

जैसेा मेरो रावरो केवल कोसलपाल ।
तौ तुलसी को है भलो तिहूँ लोक तिहुँ काल।84।

है तुलसी कें एक गुन अवगुन निधि कहैं लोग।
भलो भरोसो रावरो राम रीझिबे जोग।85।

प्रीति राम सों नीति पथ चलिय राग रिस जीति।
तुलसी संतन के मते इहै भगति की रीति।86।

 सत्य बचन मानस बिमल कपट रहित करतूति।
तुलसी रघुबर सेवकहि सकै न कलिजुग धूति।87।

तुलसी सुखी जो राम सों दुखी सो निज करतूति।
करम बचन मन ठीक जेेहि तेहि न सकै कलि धूति।88।

नातो नाते राम के राम सनेहुँ सनेहु।
तुलसी माँगत जोरि कर जनम जनम सिव देहु।89।

सब साधन को एक फल जेहिं जान्यो सो जान।
ज्यों त्यों मन मंदिर बसहिं राम धरें धनु बान।90।