दोहे-7 / दरवेश भारती
अभिनेता भी रँग गये, राजनीति के रंग।
कलावंत, गुणवन्त भी, दिखते आज मलंग॥
खून सामने देखकर, सुनकर चीख़, पुकार।
मात्र आँख मूँदे रहो, करो न कुछ तकरार॥
हितकारी हैं जो सदा, पुजते हैं हर काल।
वृद्धाश्रमवासी बने, पीपल, वट, चौपाल॥
आपद-संकट-काल में, जिनपर रक्खी टेक।
मात्र दिखावा थे सभी, संग न आया एक॥
किया राम ने वन-गमन, होना था अभिषेक।
होनी ही जब हो प्रबल, तब क्या करे विवेक॥
अपनों पर से खो दिया, जिसने निज विश्वास।
जीना जीवन-भर उसे, कभी न आया रास॥
बिन पंखों के जो मनुज, भरता रहे उड़ान।
मिले न हरगिज़ नभ उसे, व्यर्थ गँवाये जान॥
वाणी पर संयम रहे, ओठों पर जय-प्यास।
मनोनिहित का शत्रु को, हो न सके आभास॥
नेता को जनतन्त्र में, घेरे हर पल हौल।
मतदाता देंगे पटक, यदि न निभाया क़ौल॥
अब तो हुआ विलुप्त-सा, कूटनीति का दौर।
कहाँ कृष्ण, चाणक्य हैं, कूटनीति-सिरमौर॥