भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहे / त्रिभवन कौल
Kavita Kosh से
इक चाँद बहुत दूर है, इक है हमरे पास
इक बदली में है घिरा, इक है बहुत उदास
इक सावन है वेदना, इक है हर्ष विकास
विरह अगन कोई जली, कोई प्रियतम पास
इक सौंदर्य दिखावटी, इक का भीतर वास
इक क्षणभंगुर होत है, अरु इक फले कपास
इक बंदा बहु ख़ास है, इक का जीवन आम
इक है बस शाने ख़ुदा, इक ले हरि का नाम
धरती के दो रूप हैं, इक माँ इक संसार
इक प्यारी ममतामयी,इक पोषण आधार
मीरा का समर्पण इक, इक राधा का प्यार
क्यों ना हों संपूर्ण जब, कृष्ण भये आधार