भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दौड़ता चला आया / राजी सेठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वहाँ
उस नगर में
उस बरगद के नीचे
भूरे रंग के दरवाजों वाला
एक घर था
एक माँ थीं

घर
उसी नगर में
उसी बरगद के नीचे
भूरे रंग के दरवाजों वाला
अब भी है
माँ
उस घर में
अब भी है

पर वह मेरी नहीं
उन बच्चों की माँ है
जिनका बचपन

मुझे मेरे घर को
मेरी माँ को
धकियाता दफनाता
मेरे पीछे पीछे चहकता
खिलखिलाता दौड़ता चला आया