भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दौलत पाय न कीजिए / गिरिधर
Kavita Kosh से
दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान॥
ठाउं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥
कह 'गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबही के दौलत॥