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द्रुपद सुता-खण्ड-22 / रंजना वर्मा

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गोपियों को भूले भूले, गोप ब्रज धेनु सब,
भूल गये यशोदा औ, नन्द के दुलार को।
यमुना का तट भूले, कदम विटप-भूले,
भूल गये पल में ही, राधिका के प्यार को।
देवकी की ममता भी, बाँध नहीं पायी तुम्हें,
भूल गये अपनों की, मीठी मनुहार को।
भूलना सभी को नाथ, कहती हूँ जोड़ हाथ,
भूलना न बलहीन, की किसी पुकार को।। 64।।

रीति है अनोखी किसी, से न अनजानी है ये,
स्नेह के ये बन्धन, अछूते मत छोड़िये।
प्रीति हो प्रतीति से भी, कभी विपरीत यदि,
मन को प्रतीति की, दिशा में नित मोड़िये।
जीवन-डगर में न, निभना सरल यदि,
निभा जो सके न ऐसे, नाते मत जोड़िये।
जोड़ जो लिये हों किसी, भावना या कामना से,
विपदघनेरी पड़े, तब भी नतोड़िये।। 65।।

नाते जोड़ना सरल, नेह के सदा से श्याम,
नातों की तो डोर सदा, ही ये बाँधी जायेगी।
विश्व में जो आया कैसे, विपदा से बचेगा वो,
आपदा में अपनों से, आस जोड़ी जायेगी।
ऐसी अनहोनी जब, होनी बन जायेगी तो,
सुहृद स्वजन की, याद तब आयेगी।
आओ हे मुरारी बाँके, ब्रज के बिहारी हरि,
जो न आये आज लाज, द्रौपदी की जायेगी।। 66।।