भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

द्वारपाल / उदय प्रकाश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम यहाँ कहाँ बैठे हो, द्वारपाल?

यह तो निर्जन मैदान है और चौखट दरवाज़ा नहीं है कहीं भी

तुम्हें सीमेंट से नहीं बनाया गया है, द्वारपाल
तुम जागे हुए या सोए हुए हो, द्वारपाल
भूख तुम्हें लगी होगी, द्वारपाल
क्या बीड़ी पिओगे, द्वारपाल

वे जो असुरक्षित हुआ करते थे ग़रीबों से
वर्षों पहले रात में
यह जगह छोड़कर
कहीं और चले गए हैं, द्वारपाल

तुम अब
बिल्कुल सुरक्षित हो, द्वारपाल।