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द्विज / शेखर जोशी
Kavita Kosh से
यज्ञवेदी
गीत सुस्वर
गृहजाग, समिधा-धूम
ऋचाओं की अनवरत अनुगूँज
रह-रह शंख का उद्घोष !
आज मुनुवाँ द्विज हो गया है ।
अभी कुछ देर पहले
पिता का आदेश पाकर
‘माम भिक्षाम देहि’ कहता
वह शिखाधारी
दण्डधारी
मृगछाला लपेटे
राह गुरुकुल की चला था
लौट आया बाल-बटु फिर
कर न पाया अनसुनी मनुहार माँ की !
गिन रहा अब नोट,
परखता
सूट के कपड़े, घडिय़ाँ
और भी कितनी अनोखी वस्तुएँ
झोली में पड़ीं जो ।
मुनुवँ मगन है अब
आज मुनुवाँ द्विज हो गया है ।
पर, साथ छूटा हमजोलियों का
अब बीती बात होगी:
वे ताल-पोखर
वे अमराइयाँ
जूठी-कच्ची कैरियाँ ।
अब सीधे सम्वाद होगा
अग्नि, सविता औ’ वरुण से
छह पीली डोरियों से मुनुवाँ अब बंध गया है
आज मुनुवाँ द्विज हो गया है ।