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द्वैत-गीत / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
Kavita Kosh से
भरि दी स्वर अहाँ, हम तँ मात्र व्यंजना।
रेख-लेख हमर, अहिँक कला रंजना।।
चरण हमर, गति अहाँक
शब्द सहज, अर्थ बाँक
पद-वितान हमर, अहँक छन्द-बन्धना।
शक्ति अहँक, भुजा हमर
भक्ति हमर, धुजा अहँक
प्रतिमाक प्राण अहँक, हमर वन्दना।
तरुक उगब मात्र कर्म
फडब-फुलब ऋतुक धर्म
वन-उपवन रस जगैब मधुक योजना।
भूतल केँ तपन ताप
हृदय रसक बनब भाफ
उमड़ि-घुमड़ि बरिसब ई घनक घोषणा।
भरि दी स्वर अहाँ, हम तँ मात्र व्यंजना।।