भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धजा / रामस्वरूप किसान
Kavita Kosh से
बंधी कांगरै
लाल धजा
करै भगत नै
न्ह्माल धजा
मेवा-मिसरी
दूध-मळाई
देवै सगळौ
माल धजा
उड़-उड़ उळझै
रोज चिड़कल्यां
जबर बिछायौ
जाळ धजा
काची कळियां
चढ़ै भगत रै
ना करै फूल री
टाल धजा
चेला चालू
भगत समगलर
आंनै रैयी
रूखाल धजा
नित नुवां
अपराध अठै
रैयी जतन सूं
पाळ धजा
बांसै नीं अठै
कतलां तांईं
जुलमां री
टकसाळ धजा
तहखानां में
जुद्ध रौ असलौ
किण नैं कांईं
दिवाळ धजा
रोज पुलसिया
लैवे तलासी
फाड़ ना देवै
माळ धजा
राम-नाम री
करै दलाली
खड़कावै
खड़ताल धजा।