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धमक / अरुण कमल
Kavita Kosh से
जब धूप उत्तर से आने लगेगी
जब पत्तियों का रंग बदल रहा होगा
जब वे तनों से खुल गिर रही होंगी
मैं गिरूंगा रस्सी से छूट डोल-सा
किसी शहर किसी गाँव या राह में
कोई हाथ बढ़ेगा कई हाथ बढ़ेंगे
धरती मुझे सम्भाल लेगी चारों तरफ़ से
घेर लेगी मूंद लेगा गर्भ का अन्धकार
जीने के श्रम का अन्तिम पसीना ललाट पर शायद
उतर जाएगी आख़िरी फ़िल्म पुतली पर से
बच्चे दौड़ते जा रहे हैं हवा में झूलते
मेरे तन में धरती भरती उनकी धमक ।