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धरती की भाषा / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
गेहूँ की बालें,
जी भर कर अधरों से
गले से लगा लें।
गंगा-सा प्यार लिए
आए हैं वैष्णव दिन
अँजुरी भर लाल फूल
नीले सपने चुन-चुन
मिट्टी के मेघ घिरे
भीग लें, नहा लें।
सिर के ऊपर सूरज
धूप रंग घूल हुई,
छोड़ें चर्चायें
कब किससे क्या भूल हुई?
उगा हुआ उजलापन
भर आँखों पा लें
अक्षर-अक्षर दाने-दाने
सब अर्थ भरे,
दुध मुँहें शब्द-शब्द
पकने को हुए हरे
धरती की भाषा में
गीत गुनगुना लें।