भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती के बात कहऽ / रामकृष्ण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ढेर सुनली -
तोर कोइली बोली
तोता-मैना के भाखा,
गीत चौमासा के।
अब तो -

भूख के बोलीऽ हे
पेट के आसा,
तूँ, जहाँ, निगलऽ हऽ
रसगुल्ला, मुरगवा के देह
गँटकऽ हऽ दूध से बोतल तक
उहें, हमर नींद
सपना हे - बतासा बड़ी महँगा हे।

ई समाजवाद तो लगऽ हे
सात समुन्नर के कहानी,
ढेला-पत्ता के विआह
कुछ अदमी
के बात कहऽ,
ऊ धरती के
जहाँ हम ही