धरती पर अमर बेल (कविता) / कुमार कृष्ण
धरती पर नारी
दुःख भरे आँगन में खुशियों का उत्सव है
वह सपनों के धुएँ से बनाती है उम्मीद के बादल
वह है ईश्वर की असाध्यवीणा
धरती पर प्रेम की अमर बेल है नारी
नारी है महानदी
सींचती है मनुष्यता इस धरती पर
वह है आग का फूल
ममता का इन्द्रधनुष
मनुष्य को पशु
पशु को मनुष्य बनाने वाली अंगुलियाँ
उसे आता है-
सूखे बाँस को बाँसुरी में बदलना
जानती है धरती पर घर बनाना
उसकी आँखों में रहते हैं-
धरती के तमाम शब्दकोश
हथेलियों पर बिजली के फूल
वह सिर से पाँव तक आग ही आग है
फिर भी लगती है गुलमोहर का पेड़
वह है सृष्टि की अद्भुत रचना
प्रेम की परिभाषा
पता नहीं कहाँ से ले आई सबसे पहले
प्रेम इस धरती पर
वह है चट्टान पर चहकती
सोने के पंख वाली चिड़िया
चाँद का दुपट्टा
मंत्रों की गूँज इस धरती पर
वह है बादलों में बिजली
शून्य में आकाश गंगा
रिश्तों का वटवृक्ष इस धरती पर
वह है महाकाव्य धरती पर नींद
पत्थर को फूल में बदलने वाली जादूगरनी
वह है आकाश बेल
माँगती है मुट्ठी भर विश्वास
चुटकी भर राग
नारी है जीवन का विस्तार इस धरती पर।