धरती पर कवि (दो) / कुमार कृष्ण
मनुष्य पहली बार
अपनी दोस्त बनाकर लाया होगा भाषा
इस धरती पर
राजा की नजर पड़ी उस पर
उसने कहा-
मैं कब से ढूँढ रहा था तुम्हें
आओ मेरा गुणगान करो
प्रजा को सुनाओ मेरा हुक्म, मेरे फरमान
कुछ लगे नहाने उसके साथ प्रेम के पोखर में
कुछ ले गए घण्टी के अन्दर
निराला, नेरूदा, लोर्का, लीलाधर
ले आए निकाल कर चंदन बन से कविता के घर
सोचने लगे बार- बार
वह हो सकती है उनकी-
सबसे पक्की सबसे अच्छी आली
दोनों मिलकर लड़ेंगे एक लम्बी लड़ाई
इस धरती पर
भाषा ने सोचा-
सचमुच मैं पहुँच गई हूँ सही जगह
मुझे आ जाना चाहिए था बहुत पहले
धरती के कवियों के पास
उसने जगूड़ी के कान में कहा-
बहुत कम समय है लीलाधर
जितना जल्दी हो सके
बाँटो कविता का अमरफल
कविता में शब्द शब्दों में कविता
जीवित रहे इस धरती पर
जीवित रहे धरती का राग
धरती की आग
जीवित रहें सपनों के बसन्त
बचा रहे आँखों में आभास
शब्दों में जनून
बची रहे हवा में जिद
बचे रहें कविता के फूल
कविता का सच
बचा रहे भाषा का कोना
शायद इसी में कहीं बचा रहे धरती पर कवि।