भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती‘र गीगनार / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
कोनी
धरती रो कोई
आप रो सभाव
हुवै ताती
तपतां ही सूरज,
ठंडी
उगतां ही चांद,
आ कठपुतळी
नाचै नचायोड़ी
गावै सिन्धु राग
समदर रै गायोड़ी
उड़ै अचपळी पून रै
उड़ायोड़ी
कोनी निज री सत्ता ?
पण रवै हर खिण
आपरी मोय में
मोटो अवधूत
गिगनार !