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धान रॅ केलौनी / कमल
Kavita Kosh से
घिरि घिरि आबै छै घटा पहाड़ॅ पर,
हर हर गिरै छै पानी रे।
टप टप पत्ता सें पानी चुबै छै,
महुआ जेना मस्तानी रे॥
हरहर हरहर नाला बही छै,
नद्दी चलै मनमानी रे।
बापॅ के धन केॅ जेना उड़ाय छै
पूत कपूत नादानी रे॥
कुइयाँ तलैया भरिभरि गेलै,
जोस जेना केॅ जुआनी रे,
उमगै किसानॅ के मन बड़ी जोर सें,
खेत देखी रङ धानी रे॥
सनसन सनसन हवा बही छै,
बरसै छै हथिया कानी रे।
लप लप लप लप धान बढ़ै छै,
बचपन सें जेना जुआनी रे॥
करै केलौनी धानॅ के भैया,
कनिया सुघर सयानी रे।
पछिया के झोंका अँचरा उड़ाबै,
चमकै नर जुआनी रे।
घसघस घसघस घाँस उखाड़ै,
गाबै छै गीत सुहानी रे।
भरि-भरि धान कोठी में रखबै
जेना रखै सोना चानी रे॥